तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे। तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे।
तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है। तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है।
यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है। यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है।
बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है। बुद्धि, विवेक पर डालकर प्रकाश हमें पाठको के समक्ष प्रस्तुत करती है।
खून को बनाकर अपने, लाल स्याही, दर्द की कलम से लिखता हूँ। खून को बनाकर अपने, लाल स्याही, दर्द की कलम से लिखता हूँ।
तेरे दिल के हर ज़जबातों में मैं खुद को पाना चाहूँगी। तेरे दिल के हर ज़जबातों में मैं खुद को पाना चाहूँगी।